एजुकेशन डेस्क। इस 15 अगस्त को देश 70वां स्वतंत्रता दिवस सेलिब्रेट करेगा। उन स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया जाएगा, जिनकी कुर्बानियाें की बदौलत देश काे आजादी मिली। लेकिन इतने सालों के बाद भी आज ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब एक आम आदमी को नहीं मालूम। हम ऐसे ही कुछ सवाल और उनके जवाब दे रहे हैं जो अक्सर जेहन में दस्तक देते हैं। 1947 में ही क्यों मिली आजादी?
1945 में ब्रिटिश चुनावों में लेबर पार्टी को जीत मिली थी। इसके बाद भारत की आजादी की प्रक्रिया तेज हो गई। फरवरी, 1947 में लॉर्ड माउंटबैटन को भारत का आखिरी वाइसराय चुना गया, जिन पर देश को आजादी दिलाने की प्रोसेस को पूरा करने का कार्यभार था। हालांकि, योजना के मुताबिक भारत को जून, 1948 में आजादी मिलने का प्रावधान था। इसी बीच मुस्लिमाें के लिए अलग देश बनाने की मांग जोड़ पकड़ने लगी थी जिससे कई क्षेत्रों में साम्प्रदायिक झगड़े शुरू हो गए। ऐसे में माउंटबैटन ने हालात को काबू में करने के लिए 1948 की जगह 1947 में ही भारत और पाकिस्तान को आजाद करने की बात सुनिश्चित कर दी।
1945 में ब्रिटिश चुनावों में लेबर पार्टी को जीत मिली थी। इसके बाद भारत की आजादी की प्रक्रिया तेज हो गई। फरवरी, 1947 में लॉर्ड माउंटबैटन को भारत का आखिरी वाइसराय चुना गया, जिन पर देश को आजादी दिलाने की प्रोसेस को पूरा करने का कार्यभार था। हालांकि, योजना के मुताबिक भारत को जून, 1948 में आजादी मिलने का प्रावधान था। इसी बीच मुस्लिमाें के लिए अलग देश बनाने की मांग जोड़ पकड़ने लगी थी जिससे कई क्षेत्रों में साम्प्रदायिक झगड़े शुरू हो गए। ऐसे में माउंटबैटन ने हालात को काबू में करने के लिए 1948 की जगह 1947 में ही भारत और पाकिस्तान को आजाद करने की बात सुनिश्चित कर दी।
15 अगस्त को ही भारत क्यों आजाद हुआ?
भारत के आखिरी वाइसराय लॉर्ड माउंटबैटन 15 अगस्त की तारीख को शुभ मानते थे, क्योंकि सेकंड वर्ल्ड वार के दौरान 15 अगस्त, 1945 को ही जापानी आर्मी ने आत्मसमर्पण किया था। उस समय लॉर्ड माउंटबैटन अलाइड फोर्सेस के कमांडर थे। इसीलिए उन्होंने 15 अगस्त की तारीख भारत की आजादी के लिए चुनी।
रात 12 बजे क्यों मिली आजादी?
जब माउंटबैटन ने आजादी की तारीख 3 जून, 1948 से 15 अगस्त, 1947 की तो इसे देश के ज्योतिषियों ने अशुभ बताया। हालांकि, वे 15 अगस्त पर ही टिके रहे। ऐसे में 14 अगस्त की रात 12 बजे का समय आजादी के लिए तय किया गया। अंग्रेजी कैलेंडर में रात 12 बजे के बाद नया दिन शुरू हो जाता है, जबकि भारत में सूर्योदय के बाद। इसी के चलते नेहरू जी को आजादी की स्पीच 11:51 PM से 12:39 AM में देनी पड़ी।
दिल्ली ही राजधानी क्यों बनाई गई?
ब्रिटिश काल में दिल्ली को राजधानी बनाने का ऐलान 12 दिसंबर, 1911 को हुआ था। दिल्ली दरबार में पहली बार किंग जॉर्ज अपनी रानी क्वीन मैरी के साथ मौजूद थे। उन्होंने 80 हजार लोगों की मौजूदगी में घोषणा करते हुए कहा, "हमें देश की जनता को यह बताते हुए खुशी हो रही है कि सरकार और मंत्रियों की सलाह पर देश को बेहतर ढंग से प्रशासित करने के लिए ब्रिटिश सरकार भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करती है।" इस फैसले का मुख्य कारण ये भी था, क्योंकि दिल्ली देश की बीच में थी। ऐसे में यहां से देशभर में अंग्रेज आसानी से राज कर सकते थे। हालांकि, अधिकारिक तौर पर 13 फरवरी, 1931 को दिल्ली देश की राजधानी बनी। आजादी के बाद नई भारत सरकार ने भी दिल्ली को ही राजधानी बनाए रखा
गांधीजी को राष्ट्रपिता सबसे पहले किसने कहा था?
4 जून, 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को 'देश का पिता (राष्ट्रपिता) कहकर संबोधित किया। गांधी जी के देहांत के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो के माध्यम से देश को संबोधित किया था और कहा था कि 'राष्ट्रपिता अब नहीं रहे'।
जब भारत की आजादी की तारीख 15 अगस्त तय हो गई, तब जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को लेटर भेजा। इसमें लिखा था, "15 अगस्त, 1947 हमारा पहला स्वाधीनता दिवस होगा। आप राष्ट्रपिता हैं। इसमें शामिल हो अपना आशिर्वाद दें।"
रात 12 बजे क्यों मिली आजादी?
जब माउंटबैटन ने आजादी की तारीख 3 जून, 1948 से 15 अगस्त, 1947 की तो इसे देश के ज्योतिषियों ने अशुभ बताया। हालांकि, वे 15 अगस्त पर ही टिके रहे। ऐसे में 14 अगस्त की रात 12 बजे का समय आजादी के लिए तय किया गया। अंग्रेजी कैलेंडर में रात 12 बजे के बाद नया दिन शुरू हो जाता है, जबकि भारत में सूर्योदय के बाद। इसी के चलते नेहरू जी को आजादी की स्पीच 11:51 PM से 12:39 AM में देनी पड़ी।
दिल्ली ही राजधानी क्यों बनाई गई?
ब्रिटिश काल में दिल्ली को राजधानी बनाने का ऐलान 12 दिसंबर, 1911 को हुआ था। दिल्ली दरबार में पहली बार किंग जॉर्ज अपनी रानी क्वीन मैरी के साथ मौजूद थे। उन्होंने 80 हजार लोगों की मौजूदगी में घोषणा करते हुए कहा, "हमें देश की जनता को यह बताते हुए खुशी हो रही है कि सरकार और मंत्रियों की सलाह पर देश को बेहतर ढंग से प्रशासित करने के लिए ब्रिटिश सरकार भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करती है।" इस फैसले का मुख्य कारण ये भी था, क्योंकि दिल्ली देश की बीच में थी। ऐसे में यहां से देशभर में अंग्रेज आसानी से राज कर सकते थे। हालांकि, अधिकारिक तौर पर 13 फरवरी, 1931 को दिल्ली देश की राजधानी बनी। आजादी के बाद नई भारत सरकार ने भी दिल्ली को ही राजधानी बनाए रखा
गांधीजी को राष्ट्रपिता सबसे पहले किसने कहा था?
4 जून, 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को 'देश का पिता (राष्ट्रपिता) कहकर संबोधित किया। गांधी जी के देहांत के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो के माध्यम से देश को संबोधित किया था और कहा था कि 'राष्ट्रपिता अब नहीं रहे'।
जब भारत की आजादी की तारीख 15 अगस्त तय हो गई, तब जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को लेटर भेजा। इसमें लिखा था, "15 अगस्त, 1947 हमारा पहला स्वाधीनता दिवस होगा। आप राष्ट्रपिता हैं। इसमें शामिल हो अपना आशिर्वाद दें।"
आजादी के वक्त महात्मा गांधी कहां पर थे?
15 अगस्त, 1947 को जब देश आजाद हुआ तब उसका जश्न रात 12 बजे से ही शुरू हो गया था, लेकिन महात्मा गांधी इस जश्न में शामिल नहीं थे। वे दिल्ली से दूर बंगाल के नोआखली में थे जहां पर वे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन पर बैठे थे। जब उन्हें देश की आजादी का लेटर मिला तब उन्होंने इसके जवाब में लिखा, "कलकत्ता में हिंदू-मुस्लिम एक-दूसरे की जान ले रहे हैं, इन हालात में मैं आजादी का जश्न कैसे मना सकता हूं?"
जन-गण-मन को ही राष्ट्रगान क्यों चुना गया?
15 अगस्त, 1947 को जब देश आजाद हुआ तब इसका जमकर जश्न मनाया गया, लेकिन उस वक्त देश का कोई राष्ट्रगान नहीं था। तब सिर्फ वंदे मातरम् के नारे के साथ आजादी को सेलिब्रेट किया गया। आजादी के तीन साल बाद यानी 1950 में ये तय किया गया कि रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे गए 'जन गण मन' को राष्ट्रगान बनाया जाए। इसके बाद, संविधान सभा ने जन-गण-मन को भारत के राष्ट्रगान के रुप में 24 जनवरी, 1950 को अपनाया। इस राष्ट्रगान बनाने की वजह ये थी, क्योंकि इसमें देशवासी एकजुट हो जाते थे। बता दें कि टैगोर इसे 1911 में ही लिख चुके थे। इसे पहली बार 27 दिसंबर, 1911 को कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में गाया गया था।